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Ahoi Ashatami Vrat Katha अहोई अष्टमी व्रत


सेठ सेठानी की कथा (१)


किसी नगर में एक साहूकार रहता था | उसके सात पुत्र थे | एक दिन साहूकार की पत्नी खदान में मिटटी खोदकर लाने गयी | ज्योही उसने मिटटी खोदने के लिए कुदाल चलायी त्योही उसमे रह रहे स्याऊ के बच्चे प्रहार से आहात हो मर गए | जब साहूकार की पत्नी ने स्याऊ को रक्त रंजित देखा तो उसे बच्चो के मर जाने का अत्यंत दुःख हुआ | परन्तु जो कुछ होना था वह हो चूका था | यह भूल उससे अनजाने में हो गयी थी | अतः वह दुखी मन से घर लौट आई | पश्चाताप के कारण वह मिटटी भी नहीं लायी |

इसके बाद स्याऊ जब घर में आई तो उसने अपने बच्चो को मृत अवस्था में पाया | वह दुःख से कातर हो अत्यंत विलाप करने लगी | उसने इश्वर से प्रार्थना की कि जिसने मेरे बच्चो को मारा है उसे भी त्रिशोक दुःख भुगतना पड़े | इधर स्याऊ के शाप से एक वर्ष के भीतर ही सेठानी के सातों बच्चे काल-कालावित हो गए | इसप्रकार कि दुखद घटना देखकर सेठ-सेठानी अत्यंत शोकाकुल हो उठे |
उस दंपत्ति ने किसी तीर्थ स्थान पर जाकर अपने प्राणों का विसर्जन कर देने का मन में संकल्प कर लिया | मन में ऐसा निश्चय कर सेठ-सेठानी पैदल ही तीर्थ कि ओर चल पड़े | उन दोनों का शरीर पूर्ण र्रोप से अशक्त न हो गया तब तक वे बराबर आगे बढ़ते रहे | जब वे चलने में पूरी तरह असमर्थ हो गए, तो रास्ते में ही मूर्छित होकर गिर पड़े |

उन दोनों कि इस दयनीय दशा को देखकर करूणानिधि भगवान् उनपर दयाद्र हो गए और आकाशवाणी की- "हे सेठ ! तेरी सेठानी ने मिटटी खोदते समय अनजाने में ही साही के बच्चो को मार डाला था , इसीलिए तुझे भी अपने बच्चो का कष्ट सहना पड़ा | " भगवान् ने आगया दी - " अब तुम दोनों अपने घर जाकर गाय कि सेवा करो और अहोई अष्टमी आने पर विधि-विधान व् प्रेम से अहोई माता कि पूजा करो | सभी जीवों पर दया भाव रखो, किसी का अहित न करो | यदि तुम मेरे कहे अनुसार आचरण करोगे, तो तुम्हे संतान सुख प्राप्त हो जायेगा | "

इस आकाशवाणी को सुनकर सेठ-सेठानी को कुछ धैर्य हुआ और उन्होंने भगवती का स्मरण करते हुए अपने घर को प्रस्थान किया | घर पहुंचकर उन दोनों ने आकाशवाणी के अनुसार कार्य करना प्राम्भ कर दिया | इसके साथ ही ईर्ष्या-द्वेष कि भावना से रहित होकर सभी प्राणियों पर करुणा का भाव रखना प्रारम्भ कर दिया |

भगवत कृपा से सेठ-सेठानी पुनः पुत्रवान होकर सभी सुखो का भोग करते हुए अन्तकाल में स्वर्गामी हुए |


साहुकार कि कथा (२)

एक साहुकार के सात बेटे, सात बहुएँ एवं एक कन्या थी | उसकी बहुएँ कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अहोई माता के पूजन के लिए जंगल में अपनी नाद के साथ मिटटी लेने गयी | मिटटी निकालने के स्थान पर ही स्याऊ की मांद थी | मिटटी खोदते समय ननद के हाथ से स्याहू का बच्चा छोट खाकर मर गया | श्याहू के माता बोली अब मै तेरी कोख बांधुगी अर्थात अब मै तुझे संतान - विहीन कर दूंगी | उसकी बात सुनकर ननद ने अपनी सभी भाभियों से अपने बदले में कोख बंधा लेने का आग्रह किया परन्तु उसकी सभी भाभियों ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया | परन्तु उसकी छोटी भाभी ने कुछ सोच-समझकर अपनी कोख बंधाने कि स्वीकृति दे दी |

तदन्तर उस भाभी को जो भी संतान होती वे साथ दिनों के बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती | एक दिन पंडित को बुलाकर इस बात का पता लगाया गया |

पंडित ने कहा तुम काली गाय कि पूजा किया करो | काली गाय रिश्ते में स्याहू कि भायली लगती है | वह यदि तेरी कोख छोड़ दे तो तेरे बच्चे जी सकते है | पंडित कि बात सुनकर छोटी बहु ने दुसरे ही दिन से काली गाय कि सेवा प्रारंभ कर दी | वह प्रतिदिन सुबह सवेरे ऊठकर गाय का गोबर आदि साफ़ कर देती | गाय ने मन में सोचा यह कार्य कौन कर रहा है, इसका पता लगाउंगी |
दुसरे दिन गाय माता तडके उठकर क्या देखती है कि उस स्थान पर साहुकार कि एक बहु झाड़ू-बुहारा कर रही है | गौ माता ने उससे पूछा कि तू किसलिए मेरी इतनी सेवा कर रही है ?और मुझसे क्या चाहती है? जो कुछ तेरी इच्छा हो, वो मुझसे मांग ले | साहुकार कि बहु ने कहा- गाय माता, स्याहू माता ने मेरी कोख बाँध दी है, जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते है | यदि आप मेरी कोख खुलवा दे तो मै आपका बहुत उपकार मनुगी |

गाय माता ने उअसकी बात मान ली और उसे लेकर सात समंदर पार स्याह माता के पास ले चली | रास्ते में कड़ी धुप से व्याकुल होकर दोनों एक पेड़ कि छाया में बैठ गयी |

जिस पेड़ के नीचे वे दोनों बैठी थी, उस पेड़ पर गरुड़ पक्षी का एक बच्चा रहता था | थोड़ी देर में ही सांप आकर उस बच्चे को मरने लगा | इस द्रश्य को देखकर साहूकार कि बहु ने उस साँप को मरदाला और उसे एक दाल के नीचे छिपा दिया | इसके पश्चात् गरुड़ कि माँ ने वहां रक्त पड़ा देखकर साहूकार कि बहु को चोंच मरने लगी | तब साहूकार कि बहु बोली- मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा है , तेरे बच्चे को डसने कि लिए सांप आया था, मैंने उसे मरकर तेरे बच्चे कि रक्षा की है | मारा हुआ सांप दाल के नीचे दबा हुआ है |

बहु की बात सुनकर पक्षी प्रसन्न हो गयी और बोली- तू जो कुछ चाहती है, मुझसे मांग ले | बहु ने उससे कहा- सात समंदर पार स्याहू माता रहती है, तुम मुझे उन तक पहुंचा दो | तब उस गरुड़ ने उन दोनों को पंख पर बैठकर समुन्द्र के पार पहुंचा दिया |

स्याहू माता उन्हें देखकर बोली - आ बहिन, बहुत दिनों बाद याद आई है | वह पुनः बोली मेरे सर में जुए पड़ गयी है, उन्हें निकाल दे| काली गाय के कहने पर, साहूकार की बहु ने सिलाई से स्याहू माता की साड़ी जुओं को निकाल दिया | इस पर स्याहू माता अति प्रसन्न हो गयी | स्याहू माता ने उसे कहा- तेरे सात बेटे और सात बहुए हों | सुनकर साहूकार की बहु ने कहा- मुझे तो एक भी बेटा नहीं है , सात कहा से होंगे | स्याहू माता ने पूचा- इसका कारण क्या है ? उसने कहा यदि आप वचन दे,तो इसका कारण बता सकती हूँ |

स्याहू माता ने उसे वचन दे दिया | तब साहूकार की बहु ने कहा - मेरी कोख तुम्हारे पास बंधी पड़ी है , उसे खोल दें |
स्याहू माता ने कहा- मै तेरी बातों में आकर धोखा खा गयी | अब मुझे तेरी कोख खोलनी पड़ेगी | इतना कहने के साथ ही स्याहू माता ने कहा- अब तू घर जा | तेरे सात बेटे और सात बहुएँ होंगी | घर जाकर तू अहोई माता का उद्यापन करना | सात अहोई बनाकर सात कडाही देना | उसने घर लौट कर देखा तो उसे सात बेटे और सात बहुए बैठी हुई मिली |

वह ख़ुशी के मरे भाव-विभोर हो गयी | उसने सात अहोई बनाकर सात कडाही देकर उद्य्पन किया |

इसके बाद शीघ्र ही दीपावली आई | उसकी जेठानिया कहने लगी- सभी लोग पूजा का कार्य शीघ्र पूरा कर लो , कहीं ऐसा न हो की छोटी बहु अपने बच्चो का स्मरण कर रोना-धोना शुरू कर दे , नहीं तो रंग में भंग हो जायेगा |

जानकारी करने के लिए उन्होंने अपने बच्चो को छोटी बहु के घर भेजा , क्योकि छोटी बहु रुदन नहीं कर रही थी | बच्चो ने घर आकर बताया कि वह वहां आटा गूँथ रही है और उद्यापन का कार्य चल रहा है | इतना सुनते ही जेठानिया उसके घर आकर पूछने लगी कि तुने अपनी कोख कैसे खुलवाई | उसने कहा - स्याह माता ने कृपाकर उसकी कोख खोल दी | सब लोग अहोई माता कि जय जयकार करने लगे |

जिस तरह अहोई माता ने साहूकार कि बहु कि कोख को खोल दिया उसीप्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों कि अभिलाषा को पूर्ण करें |