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दीपावली कथा

दीपावली कथा- श्री महालक्ष्मी व्रत कथा

एक समय धर्मपुत्र युद्धिष्ठिर ने हाथ जोड़कर भगवान श्री कृष्ण से विनय की कि- हे भगवान ! कृपाकर आप हमे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे हमारा नष्ट राज्य व् लक्ष्मी पुनः प्राप्त हो |

श्री भगवान बोले- हे राजन ! जब दैत्यराज बलि राज्य किया करते थे, तब राज्य की सारी प्रजा सुखी थी और मेरा भी वह प्रिय भक्त था | एक बार उसने १०० अश्वमेघ यज्ञ करने की प्रतिज्ञा की | उसके जब ९९ यज्ञ पूरे हो चुके और १ यज्ञ बाकी था, तब इंद्र अपने सिंहासन छिनने के भय से रूद्र आदि देवताओं के पास पहुंचे, किन्तु उसका कुछ भी उपाय वे न कर सके | तब सब देवता इंद्र को साथ लेकर क्षीरसागर में भगवान् विष्णु के पास गए व् पुरुषशुक्त आदि वेद मंत्रो से भगवान् की स्तुति की, तब भगवान् प्रकट हुए | उनके सम्मुख इंद्र ने अपना दुःख सुनाया | भगवान् बोले- इंद्र तुम घबराओ नहीं, मै तुम्हारे भय का अंत कर दूंगा | यह कहकर उन्हें अपने अपने धाम में भेज दिया तथा स्वयं भगवान् वामन का अवतार धारण करके १०० वें यज्ञ में राजा बलि के यहाँ पहुँचे | राजा से उन्होंने तीन पैर पृथ्वी का दान माँगा और दान संकल्प हाथ में लेकर भगवान् ने एक पाँव से सारी पृथ्वी नाप ली , दूसरे पाँव से अंतरिक्ष और तीसरा चरण बलि के सर पर रखा | इतना होने पर श्री वामन देवजी ने राजा से वर मांगने को कहा | वर में राजा ने कहा - कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं अमावस्या तीन दिन इस धरती पर मेरा शासन रहे | इन दिनों सारी जनता दीप दान दीपावली पूजा आदि करके उत्सव मनाये तथा लक्ष्मीजी का पूजन हो | लक्ष्मीजी का निवास हो |

इसप्रकार वर मांगने पर विष्णु भगवान् ने कहा कि हे राजन ! यह वर हमने दिया | इस दिन लक्ष्मीजी का पूजन करने वाले के यहाँ लक्ष्मी का निवास होगा और अंत में मेरे धाम को प्राप्त होगा | यह कहकर भगवान् ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य देकर पाताल भेजा और इंद्र का भय दूर किया | तभी से महालक्ष्मी पूजन एवं दीपावली आदि का उत्सव मनाया जाता है | जिसके फलस्वरूप मनाने वाले के घर में कभी लक्ष्मी का अभाव नहीं होता |

भगवान् श्री कृष्ण बोले- हे राजन ! एक कथा और सुनिए | मणिपुर नामक नगर में एक राजा था, जिसकी पत्नी पतिव्रता और धर्मपारायण थी | एक दिन उसको पत्नी छत पर स्नान के निमित्त अपने गले के सुन्दर बेशकीमती नौलखा हार को उतारकर वहां रखकर स्नान करने लगी | उसी समय आकाश में मंडराती हुई चील की दृष्टि उस हार पर पड़ी और वह उसे लेकर उड़ गयी | किसी स्थान पर एक गरीब बुढिया की झोपड़ी पर एक मारा हुआ सांप पड़ा था, सो चील की दृष्टि सर्प पर पड़ते ही चील हार छोड़कर सर्प को ले चम्पत हो गई | रानी अपना हार चील को ले जाते देखकर उदास हो गयी तथा थोड़ी देर बाद राजा के आने पर उसने सारा वृतांत राजा से कहा | राजा ने उन्हें विश्वास दिलाया कि हार अवश्य मिल जायेगा | यह कहकर राजा अपनी सभा में पहुंचा और सारे नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि जो रानी का हार लाकर देगा वह मनचाहा वरदान पायेगा |
दूसरे दिन वह वृद्धा रानी का हार लेकर पहुंची और वह हार दे दिया | राजा ने इनाम मांगने के लिया कहा | उसने कहा कि आज से आठवें दिन महालक्ष्मी पूजन व् दीपावली है उस दिन नगर भर में कोई पूजन व् दीपावली न करे, वह सब मै ही करुँगी | उसके लिए तेल, बत्ती, दीपक आदि सब मेरे घर भिजवा दें | राजा आश्चर्य से पूछने लगा इस इनाम से तुम्हे क्या प्राप्त हुआ? वृद्धा बोली- राजन इस दिन लक्ष्मी पूजन व् दीपावली करने से महालक्ष्मीजी प्रसन्न होती है तथा सदा उसके घर में स्थिर रहती हैं | राजा बोला- मुझे लक्ष्मी पूजा करना है | वृद्धा बोली- पहले मै पूजा करुँगी फिर आप करना | ऐसा करने पर राजा व् वृद्धा के घर में अटूट संपत्ति का निवास हो गया | इसलिए लक्ष्मी कि प्रसन्नता के लिए महलों से लेकर झोपड़ों तक सर्वत्र ही लक्ष्मीजी कि पूजा होती है |
भगवान् श्री कृष्ण बोले - हे धर्मपुत्र | श्री लक्ष्मीजी के पूजन तथा दीपावली उत्सव से लक्ष्मी कि प्राप्ति होती है इसलिए हे राजन ! तुम्हारा खोया हुआ राज्य फिर से प्राप्त हो जायेगा |

श्री लक्ष्मी पूजा श्लोक

ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्चपत्न्या वहोरात्रे पश्र्वेनक्श्त्रानि रूपमश्विनो व्यात्तम |
इष्णनिषाणामुंमsईशान सर्वलोकंsईशान || लक्ष्मयै नमः ||